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कार्ल मार्क्स : जिनके अनुयायियों ने उनके स्वप्न को एक यातना में बदल दिया

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  ज़िंदगी पुस्तकालयों में बिता देने वाले कार्ल मार्क्स ने दुनिया भर में शायद सबसे ज्यादा लोगों को घरों से निकलकर अपनी दुनिया बदलने की प्रेरणा दी कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 - 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता थे। इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। तत्पश्चात्‌ उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। एक समय था जब मार्क्स, बौद्धिकता और जवानी का रिश्ता सहज माना जाता था. मार्क्सवादी होने का एक और अर्थ था परिवर्तनकामी होना, बल्कि परिवर्तनकारी होना. अब परिवर्तन का जिम्मा सरकार ने ही ले लिया है. भारत की सरकार ने अपनी एक संस्था का नाम ही दे दिया है: नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर